शिक्षा का गिरता स्तर
शिक्षा के गिरते स्तर के कारण उसकी गुणवत्ता पर प्रश्न खड़ा होना लाजिमी है। लेकिन इस बात के जिम्मेदार कौन लोग है । इस ओर न तो राजनीतिक मंथन हो रहा ना ही सामाजिक चितंन किया जा रहा है। बातें शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की अक्सर सुनने मे आती है। किन्तु सुधार कहीं नजर नहीं आता है। हालांकी इसके लिए शिक्षक भी बराबर के दोषी माने जायेंगे। आये दिन किसी मुद्दे को लेकर हड़ताल पर चले जाना और स्कूलों की छुट्टी हो जाना आम हो गया है। शिक्षार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय जाते है। लेकिन वहां शिक्षक ही नदारद रहते है। ऐसे मे शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रश्न लगना लाजिमी है। आज शिक्षा बाजारीकरण का दंश झेल रही है। इस ओर शासन की गंभीरता का आलम यह है कि वह कई योजनाएं शिक्षा के बेहतरी के लिए चला रहा है। लेकिन उन योजनाओ की दशा और दिशा की ओर कोई सकारात्मक पहल नहीं हो रही है। जिस कारण योजनाओं का सही लाभ नहीं मिल पा रहा है। हलांकी शिक्षकों की बेहतरी के मामले शासन का नजरिया सकारात्मक नहीं होना ही इस गिरते स्तर का प्रमुख कारण है। सर्व शिक्षा योजना के माध्यम से स्कूल न जाने वाले बच्चों का रूझान स्कूलों की तरफ होना यह साबित करता है। कि शिक्षा पाने के लिए हर कोई गंभीर है। लेकिन शासकीय व्यवस्था को देख कर लोगों का मोह भंग हो रहा है। जिससे पैसे वालों के बच्चें निजी स्कूलों मे पढ़ाई करते है। और गरीब बच्चे सरकारी शिक्षा का अभिशाप झेलने के लिए विवश है। गौर करने वाली बात है कि जब हमारे देश मे शिक्षा के बीच खाईं बनी हुयी है। तो उससे शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रश्र खड़ा होगा । एक तरफ सरकार शिक्षा मे सुधार की योजनाएं बनाने मे दिलचस्पी दिखाती है। तो दूसरी ओर योजनाओं के सही क्रियान्वयन की ओर कोई सकारात्मक पहल क्योंं नहीं की जाती है? इससे तो यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा का ग्राफ दिन प्रति नीचे की ओर जायेगा। सरकार शिक्षा मे किये जा रहे भेदभाव को समाप्त करने की दिशा मे कदम बढ़ाये तो शिक्षा की गुणवत्ता कायम हो सकती है। साथ ही साक्षरता का प्रतिशत भी बढ़ जायेगा। सरकार बच्चों का रूझान विद्यालयों कीओर करने के लिए मध्यान्ह भोजन येाजना लागू कर रखी है। जिससे गरीब बच्चों को भोजन के लिए भटकना न पड़े । किन्तु इस योजना का सही लाभ बच्चों को नही मिल पाता है। और बच्चों को भोजन के लिए स्कूल छोडऩा पड़ता है। बहरहाल यदि गरीब का बच्चा विद्यालय जाता है और उसे सही शिक्षा नहीं दी जाती तो वह शासन की तमाम योजनाओं के बावजूद अनपढ़ रह जाता है। यह सरकार के लिए एक सोचनीय प्रश्र है। और सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। जिससे शिक्षा के लिए चलाई जा रहीं योजनाओ का सही लाभ जरूरतमंदो को मिल सके।और सबसे अहम बात यह है कि सरकार शिक्षा मे किये जा रहे भेदभाव को मिटाने की ओर पहल करे । देशभर मे एक तरह की शिक्षा प्रणाली लागू हो जिससे देश मे समरसता का वातावरण बनाने मे सहूलियत हो। सबसे अहम बात जो है वह शिक्षकों केा लेकर है। आये दिन हड़ताल मे रहना बिना वजह विद्यालय बंद रखना आदि समस्याओं पर मनन किया जाना चाहिए। जब समाज को शिक्षा का दर्पण दिखाने वालेे शिक्षक ही अपनी जिम्मेदारी भूल जाते है तब शिक्षा की नीति पूरी तरह से अक्षम हो जाती है। आज शहरों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों मे शिक्षा की जो दुर्गति है। उसके लिए सरकार के साथ समाज भी उतना ही दोषी है। जब समाज इससे दूर होगा तो शिक्षा की बात करना भी बेमानी है। समाज को आइना दिखाने का काम अगर काई करती है तो निश्चित रूप से शिक्षा ही है।
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That's a very beautiful essay about education low
Nice essay in education
Best
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