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सियासत का सियासी रथ

Thursday 4 April 20130 comments


                                सियासत का सियासी रथ

 सत्ता की सियासत मे राज करने के मंसूबों ने सियासी रथ की सवारी आसान कर दी है। जिससे नेता इस रथ की सवारी करने के साथ जनमानस को अपनी कथनी करनी का राग सुनाने मे मशगूल है। राजस्थान की सियासत मे इन दिनों महारथियों का रथ संदेश जोरो से दौड़ाया जा रहा है। यहां गौर करने वाला तथ्य यह भी है कि यह रथ कोई आसान सा रथ नहीं है। जिस पर सियासत की अगली पारी खेलने की तैयारी चल रही है। इस रथ को तैयार करने मे काफी पैसे खर्च कर दिये जाते है। जबकी जो पैसे रथ तैयार करने मे लगाया जाता है। उससे एक गाँव को अत्याधुनिक बनाया जा सकता है। किन्तु सत्ता के मद मे ास्त इन महारथियों को विकास से ज्यादा अपनी सुविधाओं का ध्यान रहता है। जिस कारण ऐसे रथों की आवश्यकता आन पड़ी है।

जनता के खाते मे महज अपनी किस्मत पर रोना ही लिखा है। लिहाजा वह अपना दर्द किससे कहे?वह भी तव जब सियासत मे गरमाहट नजर आती हेा। हालांकी राजस्थान की राजनीति रथ पर सवार होकर कितना संवाद कर पाती है। यह चुनाव के समय स्पष्ट हो सकेगा। किन्तु राजनीति का यह शाही रथ अवश्य ही लोगों के लिए दर्शनीय बन जाता है। और ऐसा लगता है कि रथ पर सवारी करने वाला महारथी जनता को इसी तरह का विकास कर स ास्याओं से निजात दिलाने की ओर पहल करेगा। किन्तु फिर यही महारथी चुनाव समपन्न होने के बाद रथ की ही कोई सुध नही करते तो जनता तो महज उनकी दासी लगती है। यह रथ कि सी राजा का शाही रथ नहीं है। यह तो सत्ता की गलियों मे निकलने वाला अत्याधुनिक रथ है।

जिस पर दलों के निशान पोस्टर प पलेट और नेताओं के बड़े बड़े चित्र तथा अमर पुरूषों के कथनों से सजा होता है। साथ ही विलासिता की व्यवस्था का साजो समान के मामले मे इसका कोई दूसरा शानी नहीं है। एक बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि सत्ता के गलियों मे घुमाये जाने वाले इस रथ मे उन महापुरूषों के कथन चित्र आदि लगाकार जनता को अपने पक्ष मे किया जाता है। जो न तो इस रथ कि कल्पना कर सके और ना ही इसकी सवारी। उन्होने तो जनता का दु ा सुख अपना दुख सुख समझा। लेकिन अत्याधुनिकता की चाह जनता से अधिक रथ को पसंद करने लगी। मसलन जनता के दुख दर्दाेें से इस पर सवार महारथियों को कोई वास्ता नही है। उन्हें तो अपना संदेश देने के लिए निकलना है। लिहाजा रथ भी ऐसा होना चाहिए कि उसमे अत्याधुनिकता का सारा साजो समान साथ हो। और फिर इसी रथ पर सियासत का ताना बाना बुने जाने की तैयारी की जाती है। इन रथों की सवारी क्या विकास को गति दे पायेगी या नहीं यह तो मै नहीं जानता लेकिन इतना स्पष्ट है कि सत्ता के गलियारें मे अब रथ से घूमने वाला महारथी शायद ही जनता का प्रेम हासिल कर पाये।

खबर है कि राजस्थान मे कांग्रेस ने संदेश यात्रा की शुरूआत कर चुनावी विगुल फूका तो भारतीय जनता पार्टी ने भी सुराज संकल्प यात्रा निकालने का ऐलान कर दिया । इसके अलावा यहां कई महारथी रथों की सवारी करने की तैयारी मे है। आने वाले दिनों मे यहां का माहौल किसी कुरूक्षेत्र सा दिखाई देगा जहां रथों पर सवार महारथी एक दूसरे की नीतियों की मुगालफत करते नजर आयेगे। बहरहाल यह एक सोचनी विषय है कि जनता के सेवक होने का दावा करने वाले यह महारथी अत्याधुनिक सुख ाोग करने मे रत है। लेकिन जनता अपनी दुर्दशा पर आज भी आंसू बहा रही है। चुनावी समय मे ये सेवक जनता के आंसू पोछने की बात कर उनके सर्वागींण बिकास की बात करते है। किन्तु बाद के हालात जस के तस ही रहते है।
कहीं न कहीं इन हालातों के लिए जनता भी जि मेदार है। यदि वह चुनाव मे इन रथी महारथियों केा इनकी औकात बताने की ओर सक्रिय हो जाए तो इनको किया गया बादा हमेशा याद रहेगा। किन्तु इन चतुर महारथियों को जनता की नब्ज मालूम है। और वह जानते है कि जनता को बेवकूफ बनाते रहो और सत्ता के सियासी रथों मे सवार होकर जनता को अपना संदेश देते रहों। जिससे जनता का समर्थन हासिल हो और इन महारथियों की चाह पूरी हो सके। गौरतलब है कि इन दिनों पग यात्रा की बात ही नही की जाती । जबकी पद यात्रा से जन ाावनाएं जुडऩा स्वा ााविक लगता है। किन्तु रथ पर सवार सियासी संदेश के साथ जनता को अपनी तरह मोडऩा मजाक ज्यादा लगता है। खैर जब सियासती रथों को दौड़ाया ही जा रहा है। तब ऐसे मे इन योद्धाओं का महासंग्राम दिलचस्प ही होगा।
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